जानता
हूँ की कभी, उतार सकता मै नहीं,
क़र्ज़
तेरे दूध का, क़र्ज़ तेरे प्यार का.
माँ
तेरी ममता ही है जो आज ये मुकाम है,
तेरी ही शिक्षा से आज, जग में मेरा नाम है,
तेरे
डाटने से ही, मुझमे गुण है रचे,
तेरी
ही दुआओं से, मेरी ज़िन्दगी सजे,
बिन
तेरे कुछ नहीं, सुर-विहीन गीत हूँ,
तेरी
ही धुन से बना, सुर मै महान सा,
जानता
हूँ की कभी, उतार सकता मै नहीं,
क़र्ज़
तेरे दूध का, क़र्ज़ तेरे प्यार का.
जब
गिरा मै धरा पे, तूने थामा नहीं,
हिम्मत
करो, उठो! बात तूने ये कही,
अब
कहीं जो पग पड़े, पत्थरों की राह पे,
आत्म-निर्भर
चलू, गिर के भी जहां में,
रास्ते
की अडचनों को ठोकरे मै मार दूँ,
चल
पड़ा हूँ तन के मै, पर्वतो की शान सा,
जानता
हूँ की कभी, उतार सकता मै नहीं,
क़र्ज़
तेरे दूध का, क़र्ज़ तेरे प्यार का.
आज
तू बीमार है, कष्ट मे है तू पड़ी,
तेरे
साथ माँ मेरी, मै रहूँगा हर घड़ी,
माथा
तेरा जो तपे, तो तोड़ दू कैलाश को,
तेरी
ओर जो बड़े, तो थाम लू विनाश को,
तेरे
दुःख मिटाने को, प्राण भी लुटा दू मै,
बन
के रहूँगा पुत्र, मै श्रवण कुमार सा,
जानता
हूँ की कभी, उतार सकता मै नहीं,
क़र्ज़
तेरे दूध का, क़र्ज़ तेरे प्यार का.
Beautiful!
ReplyDeleteVery nice!!! Hope your mom is doing better..
ReplyDeletetouchy poem .. written with all the heart out !
ReplyDeleteBahut khoosurat.
ReplyDeletemarmik...
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