Tuesday, 8 October 2013

मेरे पिताजी




तुम मेरे भगवान् हो, तुम्ही इष्ट देव हो,
जिसकी छाव में पला, हां तुम्ही वो पेड़ हो.

हाँ बड़ा डरता था मै पिताजी आप से,
आप ही के डर से मै दूर रहा पाप से,
बिन डरे जहां से, आप ही की छाव में,
निर्भीक, मै निडर रहा दुनिया के वैर-भाव से,
डांट में, मार में, आपके था स्नेह भरा,
पाठ ज़िन्दगी का आप ही से मैंने है पड़ा,
गर पड़ी जो मुश्किलें, आप न कभी रुके,
ईमान सर्वोपर्री, आप न कभी झुके,
आप से ही सीख कर आज जुंग मई करू,
आप ही का नाम लू, जब कभी भी मै डरूं,
आपको गर्व हो, कर्म वो करूँगा मैं,
आपके बुढ़ापे की लाठी बनूँगा मैं.

उम्र ढल रही है अब, माना आप थक रहे,
मेरे जिगर में आपके विचार पर धधक रहे,
ये आप ही की सीख है, ये आप ही के पाठ है,
पहाड़ हो या खाई हो, मेरे लिए सपाट हैं,
आप ही का अक्स हूँ, आप सा ईमान है,
घर ही मेरा तीर्थ है, आप ही भगवान् है.

4 comments:

  1. जिसने मुझे चलना सिखाया, जीवन जैसी अभूज पहेली को सुलझाया !
    मार्ग का प्रकाश बनकर खुद से पहले मुझे आगे बढ़ाया !

    माँ कि ममता सुख का छाँव है, पिता कि डॉट सबक कि धूप है
    जीवन में मैं उनके लिए सर्वोपरि हूँ ऐसा भी उनका एक रूप है !

    अभिमान स्वभिमान के अंतर को पिता ने बड़ी बारिखी से समझाया
    अपने जीवन के अभुभव को पाठ बनाकर जीवन की परीक्षा में उत्तीर्ण करवाया !

    जब असफलताएं मुझे गीरातीं है माँ मुझे उठाकर सीने से लगाती है
    पिता के सहारा देते ही मुझमें जीत कि ऊर्जा फिर से आ जाती है !

    मन के विचारों का कोई अनुमान नहीं कायर कि कायरता का कोई गुणगान नहीं
    पिता कि सलाह जो मानकर चला, बिना गिरे चलने वाला इंसान वही !

    मेरे होने का एहसास मुझे हो गया आज मैं अपने पिता का पूर्ण रूप हो गया,
    अब मुझे रास्तों पर खुद ही चलना है अपने पिता का मुझे स्वाभिमान बनना है !

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  2. aap hi se inspired hokar kuch likhne ki khosish ki hai bataiyega jarooro

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