Sunday 29 December 2013

इक ये भी हिंदुस्तान है.




पुल पे भागती-दौड़ती ज़िन्दगी से परे,
एक ज़िन्दगी उन सड़को के नीचे भी बसती है,
जहाँ हर दिन जीवन इक जंग है,
जहां मौत जीवन से भी सस्ती है.

दुनिया की नजरो के सामने है मगर,
दिखती नहीं है दिन के उजालो में,
कभी रात में झाको उन खम्भों के नीचे,
लिपटी मिलेगी फटी हुई शालो में.

जहां रात को सपने भी आते है,
तो अगले दिन की थाल नज़र आती है,
विकास की इन सड़को के नीचे,
ये ज़िन्दगी क्यों नहीं खुशहाल नज़र आती है?

वहां ऊपर सरपट दौड़ती दुनिया है,
जो देख सड़क पे गड्ढे रोटी है,
यहाँ कैद खपच्ची की दीवारों में,
सर्द रात में नंगी धरती पे सोती है.

जहां कीचड़ में रेंगती है किलकारियां,
कैसे मानू वो देश महान है?
घोटालो और आन्दोलनों से अनभिज्ञ,
इक ये भी हिंदुस्तान है, इक ये भी हिंदुस्तान है. 

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