Thursday, 15 August 2013

हे चाटुकार!





हां तुम चाटुकार हो, मन से तुम बीमार हो,
है लीलता जो देश को, हा तुम वही बुखार हो,
है रूह तेरी क्यों मरी? क्यों बन चुके ग़ुलाम तुम?
क्यों किसी के तलवों के नीचे निसार हो?

क्यों भला किसी की चाटुकारिता में व्यस्त है?
सो रहा है तू, उधर देश तेरा पस्त है,
क्यों किसी के वास्ते, झूठ तुम यूँ गड़ रहे?
क्यों किसी की शान में, तुम कसीदे पड़ रहे?
क्या तुझे दिखे नहीं सत्य सामने खड़ा?
क्या तेरा ज़मीर है पाताल में गड़ा?
सड़ रहे हो क्यों भला?जाग लो, जंग करो,
मरना है अगर तो मातृभूमि के लिए मरो.

हाँ तुम चाटुकार हो, विकृत हो, विकार हो,
है लीलता जो देश को, हाँ तुम वही बुखार हो,
नहीं तेरे हृदय में अब कोई भी संवेदना,
हा दे रहे हो हर घड़ी, माँ को भारी वेदना.

सरहदों पे रोज़ वीर है शहीद हो रहे,
तुम इधर बेशर्म, खादियों को ढो रहे,
खेलते हो जा रहे, राजनीती बेहया,
डाल के पड़े हो इंसानियत पे बेड़िया,
चीखते हो लड़ रहे, ख्वामखाह झगड़ रहे,
जिनको पैरों में गिरे, वही तुमहे रगड़ रहे,
आदमी हो या के तुम जानवर हो बोल दो,
सत्य सामनें खड़ा, आँखें अपनी खोल दो.

हां तुम चाटुकार हो, व्यर्थ हो, बेकार हो,
जला रहा जो देश को, ज़हर की वो फुहार हो,
है देश सर्वोपरि, उठो, चलो, कर्म करो,
हाँ त्याग दो ये नीचता, ज़रा सा तो शर्म करो.





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