उठो रे बंधू, आँखें खोलो, ये इतवार नहीं है,
उठो रे बहना, निद्रा तोड़ो, ये त्यौहार नहीं है,
जागो, बाहर निकलो, पूरी कर लो ज़िम्मेदारी,
एक बटन में छुपी हुई है, किस्मत तेरी सारी,
जाओ जाके बटन दबाओं, कस के चोट करो,
देखभाल के, ठोक बजा के, अबकी वोट करो.
अब न बिकना चंद रुपए में, न पीना दारु देशी,
त्याग प्रलोभन, सोच समझ, करो भ्रष्ट की ऐसी-तैसी,
लैपटॉप और मुफ्त के टीवी पड़ जातें है भारी,
तुम्ही को बाटे, चुपके से काटें ये जेब तुम्हारी,
लालच के इन खंभों पे अबकी समझ की चोट करो,
निकलो घर से, जागो! और जाके वोट करो.
धर्म-जात के नाम पे तुमने बहुत किया मतदान,
अबकी उसको ही चुनना जो हो सच्चा इंसान,
परिवारवाद की जंजीरों के बन्धनों से भागो,
है लोकतंत्र ये, राजतंत्र के चाटुकारों को त्यागो,
घायल देश पड़ा है उसपे अब न चोट करो,
निकलो घर से, आँखें खोलो! जाके वोट करो.
लाठी और बन्दूक के भय से बस अब दबना छोड़ो,
मुहँ पे जड़े हुए जो ताले, मार हथौड़ा तोड़ो,
मौत शाश्वत सत्य है फिर क्यों, घुट-घुट के यो जीना?
बाहर निकलो हक आजमाओं, चौड़ा कर के सीना,
खादी की गुंडागर्दी पर अब हँस के चोट करो,
निकलो घर से बाँध कफ़न और जाके वोट करो.
वोट करो और देश बचालो, ताकत है ये तेरी,
गर चूक गए तो पांच साल फिर झेलना हेरा-फेरी,
फिर मत कहना घर पे बैठे, की भ्रष्टाचार बहुत है,
फिर मत रोना घुनते-घुनते, की अत्याचार बहुत है,
है हाथ में तेरे ताकत, बेइमानो पे चोट करो,
निकलो घर से, भारत जागो! जाके वोट करो.
Awesome and very thought provoking.
ReplyDeleteI agree that if you don't vote you lose the right to complain. I just wish that this effort from you reaches a larger audience. Send it to leading newspapers and public media for more awareness !