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Monday, 13 July 2015

ये मेरा कश्मीर है.




चीखती रातें, रक्त-रंजित कटारे,
जलते आशियाने, सिसकती दीवारें,
याद है आज भी, वो जख्म ताज़ा है,
चुभते है तेरी कश्मीरियत के नारे.
मेरी ज़मीन से, मुझे बेदखल कर,
खुश तू हुआ था, जला के मेरा घर,
जो आज में लौटना चाह रहा हूँ,
तेरे प्यार में क्यों, दिखता मुझे डर?
तू जो आज मुझको, भाई कह रहा है,
मेरी ही चिता पे घर बना रह रहा है,
ज़रा खोल देख तेरे घर की वो टोटी,
आज भी उसमें मेरा, लहू बह रहा है.

तेरे खेल से, तेरी हर चाल से,
वाकिफ हू कातिल, तेरे हर जाल से,
बहुत रह चुका माँ के आचल से वंचित,
है लौटना अब तो हर हाल में,
जितने जतन तुझे, करने है करले,
स्वांग तुझे जितने आतें है रच ले,
गूंजेगी फिर वादी में वो घंटियाँ,
बारूद मेरे मंदिर में जितना हो भर ले.

न जिन्ना की है ये विरासत,
न गिलानी की ये जागीर है,
श्यामा प्रसाद की है ये समाधि,
ऋषि कश्यप का ये कश्मीर है,
मेरा कश्मीर है.

Sunday, 29 December 2013

इक ये भी हिंदुस्तान है.




पुल पे भागती-दौड़ती ज़िन्दगी से परे,
एक ज़िन्दगी उन सड़को के नीचे भी बसती है,
जहाँ हर दिन जीवन इक जंग है,
जहां मौत जीवन से भी सस्ती है.

दुनिया की नजरो के सामने है मगर,
दिखती नहीं है दिन के उजालो में,
कभी रात में झाको उन खम्भों के नीचे,
लिपटी मिलेगी फटी हुई शालो में.

जहां रात को सपने भी आते है,
तो अगले दिन की थाल नज़र आती है,
विकास की इन सड़को के नीचे,
ये ज़िन्दगी क्यों नहीं खुशहाल नज़र आती है?

वहां ऊपर सरपट दौड़ती दुनिया है,
जो देख सड़क पे गड्ढे रोटी है,
यहाँ कैद खपच्ची की दीवारों में,
सर्द रात में नंगी धरती पे सोती है.

जहां कीचड़ में रेंगती है किलकारियां,
कैसे मानू वो देश महान है?
घोटालो और आन्दोलनों से अनभिज्ञ,
इक ये भी हिंदुस्तान है, इक ये भी हिंदुस्तान है.