तुम मेरे भगवान् हो,
तुम्ही इष्ट देव हो,
जिसकी छाव में पला,
हां तुम्ही वो पेड़ हो.
हाँ बड़ा डरता था मै
पिताजी आप से,
आप ही के डर से मै दूर
रहा पाप से,
बिन डरे जहां से, आप
ही की छाव में,
निर्भीक, मै निडर
रहा दुनिया के वैर-भाव से,
डांट में, मार में,
आपके था स्नेह भरा,
पाठ ज़िन्दगी का आप
ही से मैंने है पड़ा,
गर पड़ी जो
मुश्किलें, आप न कभी रुके,
ईमान सर्वोपर्री, आप
न कभी झुके,
आप से ही सीख कर आज
जुंग मई करू,
आप ही का नाम लू, जब
कभी भी मै डरूं,
आपको गर्व हो, कर्म
वो करूँगा मैं,
आपके बुढ़ापे की लाठी
बनूँगा मैं.
उम्र ढल रही है अब,
माना आप थक रहे,
मेरे जिगर में आपके
विचार पर धधक रहे,
ये आप ही की सीख है,
ये आप ही के पाठ है,
पहाड़ हो या खाई हो,
मेरे लिए सपाट हैं,
आप ही का अक्स हूँ, आप
सा ईमान है,
घर ही मेरा तीर्थ
है, आप ही भगवान् है.